- शेर के समान संतों का निशाना नहीं चूकता
- सतसंग मिलने से पशु से इंसान और फिर देवता बन जाता है
उज्जैन (मध्य प्रदेश)। आजकल चारों तरफ फैली अशांति, झगड़े, झूठ का बोलबाला आदि समस्याओं के मुख्य कारण को रेखांकित करने वाले और उनके उपाय को भी बताने वाले इस समय के महान समाज सुधारक, महापुरुष उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 2 जनवरी 2022 को उज्जैन आश्रम में दिए सतसंग में बताया कि पहले सत्संग जब आदमी सुनता रहता था तो हर तरह की जानकारी प्राप्त हो जाती थी, लोक-परलोक बनाने की, गृहस्थ आश्रम चलाने की, आत्मा-परमात्मा की और आत्मज्ञान की भी।
बताए हुए युक्ति के अनुसार जब आदमी काम करने लगता है तब बोध, ज्ञान हो जाता है कि मैं कौन हूं, प्रभु कौन है। सुन करके आदमी को अनुभव नहीं होता है लेकिन जब करता है, बोध, अनुभव हो जाता है तब विश्वास हो जाता है। जो संतों का, पूरे गुरु का सतसंग, गुरु महाराज जैसे पूरे संत का सतसंग सुना, उससे बहुत लोगों के अंदर परिवर्तन आया।
वर्ण व्यवस्था के समय ये कई तरह के वाद नहीं थे जो आज हैं
देखो जब वर्ण व्यवस्था बनी थी तब उस समय पर आज की तरह से जाति-पाति और यह क़ौमवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि वाद जितने चल रहे हैं, ये सब नहीं थे। अपना-अपना काम लोग करते थे, उसको अपना धर्म समझते थे। यह वर्ण व्यवस्था किसने बनाया? ऋषि-मुनियों ने। उनको आवाज ब्रह्मा के मुंह से सुनाई पड़ी थी। उनको आदेश हुआ था कि तुम इनको सुना-समझा दो। उसी आधार पर वर्ण व्यवस्था बना दिया था। चार वर्ण बनाया था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र। यह लोग अपना-अपना कर्तव्य का पालन करते थे। ऐसे बच्चा पैदा होता है तो उसको कोई ज्ञान नहीं होता है। तो उसको कहा गया-
जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते। वेदपाठाद् भवेद् विप्रः ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः।।
ब्रह्म तक का ज्ञान उनको रहा। उसके आगे का नहीं रहा। उसके आगे का भेद खोलने वाले उनको नहीं मिले। वो तो कलयुग में आये। जब संत आए तो आगे का भेद खोला। उस वक्त पर जो ब्राम्हण कहलाते थे वह ब्रह्म को जानते थे, ब्रह्म के पास आते-जाते थे, ब्रह्म शक्ति को प्राप्त करते थे।
जैसे बच्चे को जानकारी कराई जाती है ऐसे ही सतसंग में व्यक्ति को भी सभी तरह की जानकारी कराई जाती है
यह बच्चा जब पैदा होता है तो कोई ज्ञान नहीं रहता है। उसको ज्ञान मां-बाप, परिवार के लोग सिखाते हैं। विद्या गुरु बच्चे को पढ़ाते, सिखाते हैं। जब आध्यात्मिक गुरु मिलते हैं तो ऊपर का ज्ञान कराते हैं। शुरू में कोई जानकारी नहीं रहती है। जैसे बच्चे को ज्ञान नहीं होता है ऐसे ही जिनको जानकारी नहीं होती है उनको जानकारी करानी पड़ती है। तो सतसंग के द्वारा जानकारी कराई जाती है, बताया जाता है। जब सतसंग और पूरे गुरु मिल जाते हैं तब पशु से आदमी बन जाता है। आदमी और मनुष्य का कर्तव्य क्या है?
मनुष्य का कर्म क्या है? किस तरह से मनुष्य को रहना चाहिए? यह सारी चीजें धार्मिक किताबों में मिलती हैं। लोग सुनाते हैं, पहले लोग सुनाते थे। अब तो ढोलक-मंजीरा करके लोगों का मनोरंजन कर देते हैं। राम-कृष्ण कथा, महाभारत की कथा सुना कर के प्रवचन को खत्म करते हैं। ज्ञान वाली बातें, प्रयोग वाली बातें जिससे आदमी शरीर से सुखी रहे, आत्मा को शान्ति मिले वो बात कम मिलती है।
सन्त सतसंग से बदलाव ला देते हैं, जानवर से मानव फिर देव बना देते हैं
लेकिन जो संत होते हैं वह अपने निशाने के पक्के होते हैं। उनका निशाना कभी भी चूकता नहीं हैं। जैसे शेर के समान संतों का निशाना नहीं चूकता। संतों का निशाना क्या होता है? काल के गाल-जाल से निकाल करके जीवों को अपने असली घर पहुंचाना। देखो जैसे कहा गया, सतसंग मिलने से पशु, आदमी बन जाता है। और पशुता जो करे जैसे आपै आप चरै, पशु खुद खाता है दूसरा कोई खाने लगे तो मार कर भगाता है।
आप ही समझो बच्चा पैदा करने की जब इच्छा जगती है तो पहचान नहीं रहती है कि हमारी मां, बहन, बेटी है, कुछ नहीं, ये पशुता कहलाती है। अब अगर आदमी भी उसी तरह का करने लग जाये तो अंतर नहीं रह जाता है। लेकिन जब सतसंग मिलता है तब यह पशुता अगर रहती भी है तो खत्म हो जाती है। तो पशुता से दस होकर इंसानियत आती है, आदमी बनता है और फिर आदमी से कहते हैं देव बन जाता है।
सतगुरु से जब जानकारी मिलती है तब देवताओं से भी आगे मनुष्य निकल जाता है
देवताओं का काम क्या है? देना। कोई भी चीज हो दिया या लिया जाता है। तो मनुष्य के अंदर जब उदारता, सेवाभाव, परोपकार आ जाता है, इंसान को इंसान समझने लगता है, भेड़ बकरी कुत्ता मुर्गा भैंसा नहीं समझता है, इंसान को इंसान से प्रेम हो जाता है, देवतुल्य हो जाता है। जब जानकारी हो जाती है कि देवताओं के भी परे कोई है, उनके भी पिता हैं जिनको निरंजन भगवान ईश्वर कहा गया तो उनकी भी पावर आ जाती है उसमें और जब पूरे गुरु सतगुरु मिल जाते हैं तो उन (देवताओं) से भी आगे अपने निज घर की तरफ जीव निकल जाता है।
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